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बाजरा की खेती

अरहर की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

अरहर की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

अरहर अपने आप में पोषण और पोषक तत्वों का खजाना होती है। साथ ही, इसकी खेती के पश्चात मृदा को भी अच्छी मात्रा में पोषण प्राप्त हो जाता है। 

दलहन उत्पादन के क्षेत्र में कृषकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार निरंतर प्रयासरत है। इसी के साथ कृषकों को ज्यादा पैदावार देने वाली दाल की उत्तम किस्मों की खेती के लिए भी प्रोत्साहन मिल रहा है। 

दालों की खेती के विषय में बात की जाए तो भारत में अरहर दाल बड़े स्तर पर उगाई जाती है। विश्व की 85% फीसद अरहर की उपज भारत में ही होती है। 

बतादें, कि अरहर की दाल प्रोटीन, खनिज, कार्बोहाइड्रेट, लोहा, कैल्शियम आदि पोषक तत्वों से भरपूर होती है। इसकी खेती विशेष तोर पर बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में की जाती है। 

अरहर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मृदा 

अरहर दाल का उत्पादन शुष्क और नमी वाले इलाकों में किया जाता है। इसकी खेती के लिए अच्छी सिंचाई के साथ सूर्य की ऊर्जा की भी आवश्यकता होती है। 

इसलिए इसकी बुवाई के लिए जून-जुलाई का महीना सबसे अच्छा माना जाता है। अरहर की बेहतरीन पैदावार लेने के लिए अरहर को मटियार दोमट मृदा या रेतीली दोमट मृदा में उगा सकते हैं। 

अरहर की बुवाई से पहले खेतों में गोबर की कंपोस्ट खाद को डालकर मृदा को पोषण प्रदान करें। खेत में गहरी जुताईयों के पश्चात जल निकासी का अवश्य प्रबंध करें, क्योंकि जलभराव से अरहर बर्बाद हो जाती है। 

जून-जुलाई के मौसम में पहली बारिश पड़ते ही या जून के दूसरे सप्ताह से अरहर की बुवाई का कार्य शुरु कर लें। बुवाई के लिए अरहर की मान्यता प्राप्त उन्नत किस्मों का ही चुनाव करें, इससे गुणवत्तापूर्ण उपज लेने में सहायता मिलेगी। खेतों में बुवाई से पहले बीजोपचार भी करना अत्यंत आवश्यक है, जिससे फसल में कीट-रोग न लग पाऐं। 

अरहर की फसल में सिंचाई और पोषण प्रबंधन

खेतों में अरहर की बुवाई करने के पश्चात समय-समय पर निराई-गुड़ाई का कार्य करें और खरपतवारों को उखाड़कर भूमि में ही दबा दें। अरहर की फसल में बुवाई के 30 दिन पश्चात फूल आने पर प्रथम सिंचाई कर लें। 

दूसरी सिंचाई का कार्य फसल में फली आने पर मतलब करीब 70 दिन करना चाहिए। अरहर की सिंचाई बारिश पर ही निर्भर करती है। 

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परंतु, कम बारिश पड़ने पर बुवाई से 110 दिन बाद भी फसल में पानी लगा देना चाहिए। अरहर में कीट और बीमारियों की निगरानी करते रहें और इनकी रोकथाम के लिए जैविक कीटनाशकों का ही उपयोग करें।

अरहर की फसल में लागत और आय

सह-फसल के रूप में अरहर की खेती करने पर यह 5 साल तक किसानों को कम खर्च में दोगुना लाभ कमा कर देती है। अरहर के साथ ज्वार, बाजरा, उड़द और कपास की खेती कर सकते हैं। 

अरहर खुद तो पोषण का खजाना होती ही है। साथ ही मिट्टी को भी पोषण प्रदान करती है। अरहर के उत्पादन की बात करें तो करीब 1 हैक्टेयर उपजाऊ और सिंचित भूमि से 25-40 क्विंटल तक उपज उठा सकते हैं। 

वहीं कम पानी वाले क्षेत्रों में भी अरहर 15-30 क्विंटल तक उपज प्रदान करती है। यही वजह है, कि प्रमुख दलहनी फसल होने के साथ-साथ इसे नकदी फसल भी कहा जाता है।

बाजरा देगा कम लागत में अच्छी आय

बाजरा देगा कम लागत में अच्छी आय

बाजरा खरीफ की मुख्य फसल है लेकिन अब इसे रबी सीजन में भी कई इलाकों में लगाया जाता है। गर्मियों में इसमें रोग भी कम आते हैं और साल भर यह खाद्य सुरक्षा में भी योगदान दे पाता है। इसके लिए यह जानना जरूरी है कि बाजरे की उन्नत खेती कैसे करें 

बाजरे की आधुनिक, वैज्ञानिक खेती

बाजरा कोस्टल क्राप है और किसी भी कोस्टल क्राप में पोषक तत्व गेहूं जैसी सामान्य फसलों के मुकाबले कहीं ज्यादा होते हैं। बाजरा की हाइब्रिड किस्मों का उत्पादन गेहूं की खेती से ज्यादा लाभकारी हो रहा हैं। कम पानी और उर्वरकों की मदद से इसकी खेती हो जाती है। अन्न के साथ साथ यह पशुओं को हरा और सूखा भरपूर चारा भी दे जाता है। बाजरे के दाने में 11.6 प्रतिशत प्रोटीन, 5.0 प्रतिशत वसा, 67.0 प्रतिशत कार्बोहाइडेट्स एवं 2.7 प्रतिशत खनिज लवण होते हैं। इसकी खेती के लिए दोमट एवं जल निकासी वाली मृदा उपयुक्त रहती है। रेगिस्तानी इलाकों में सूखी बुबाई कर पानी लगाने की व्यवस्था करें। एक हैक्टेयर खेत की बुवाई के लिए 4 से 5 कि.ग्रा. प्रमाणित बीज पर्याप्त रहता है। 

बाजरे की उन्नत किस्में, संकर

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बाजरा की संकर किस्में ज्यादा प्रचलन में हैं। इनमें राजस्थान के लिए आरएचडी 21 एवं 30,उत्तर प्रदेश के लिए पूसा 415,हरियाणा एचएचबी 505,67 पूसा 123,415,605,322, एचएचडी 68, एचएचबी 117 एवं इम्प्रूब्ड, गुजरात के लिए पूसा 23, 605, 415,322, जीबीएच 15, 30,318, नंदी 8, महाराष्ट्र के लिए पूसा 23, एलएलबीएच 104, श्रद्धा, सतूरी, कर्नाटक पूसा 23 एवं आंध्र प्रदेश के लिए आईसीएमबी 115 एवं 221 किस्म उपयुक्त हैं। बाजार में प्राईवेट कंपनियों जिनमें पायोनियर, बायर, महको, आदि की अनेक किस्में किसानों द्वारा लगाई जाती हैं। आरएचबी 177 किस्म जोगिया रोग रोधी तथा शीघ्र पकने वाली है। औसत पैदावार लगभग 10-20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा सूखे चारे की पैदावार 40-45 क्विंटल है। आरएचबी 173 किस्म 75-80 दिन, आरएचबी 154 बाजरे की किस्म देश के अत्यन्त शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों के लिये अधिसूचित है। 70-75 दिन में पकती है। आईसीएमएच 356- यह सिंचित एवं बारानी, उच्च व कम उर्वरा भूमि के लिए उपयुक्त, 75-80 दिन में पकने वाली संकर किस्म हैं। तुलासिता रोग प्रतिरोधी इस किस्म की औसत उपज 20-26 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। आईसीएमएच 155 किस्म 80-100 दिन में पककर 18-24 क्विंटल उपज देती है। एचएचबी 67 तुलासिता रोग रोधक है। 80-90 दिन में पककर 15-20 क्विंटल उपज देती है।

 

बीजोपचार

 

 बीज को नमक के 20 प्रतिशत घोल में लगभग पांच मिनट तक डुबो कर गून्दिया या चैंपा से फसल को बचाया जा सकता हैं। हल्के बीज व तैरते हुए कचरे को जला देना चाहिये। तथा शेष बचे बीजों को साफ पानी से धोकर अच्छी प्रकार छाया में सुखाने के बाद बोने के काम में लेना चाहिये। उपरोक्त उपचार के बाद प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थायरम दवा से उपचारित करें। दीमक के रोकथाम हेतु 4 मिलीलीटर क्लोरीपायरीफॉस 20 ई.सी. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। 

बुवाई का समय एवं विधि

  bajra kheti 

 बाजरा की मुख्य फसल की बिजाई मध्य जून से मध्य जुलाई तक होती है वहीं गर्मियों में बाजारा की फसल लगाने के लिए मार्च में बिजाई होती है। बीज को 3 से 5 सेमी गहरा बोयें जिससे अंकुरण सफलतार्पूवक हो सके। कतार से कतार की दूरी 40-45 सेमी तथा पौधे से पौधे की दरी 15 सेमी रखें। 

खाद एवं उर्वरक

बाजरा की बुवाई के 2 से 3 सप्ताह पहले 10-15 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर की दर से देना चाहिए। पर्याप्त वर्षा वाले इलाकों में अधिक उपज के लिए 90 कि.ग्रा. नाइटोजन एवं 30 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से दें।

 

खरपतवार नियंत्रण

बाजरा की बुवाई के 3-4 सप्ताह तक खेत में निडाई कर खरपतवार निकाल लें। आवश्यकतानुसार दूसरी निराई-गुड़ाई के 15-20 दिन पश्चात् करें। जहां निराई सम्भव न हो तो बाजरा की शुद्ध फसल में खरपतवार नष्ट करने हेतु प्रति हेक्टेयर आधा कि.ग्रा. एट्राजिन सक्रिय तत्व का 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

 

सिंचाई

 

 बाजरा की सिंचित फसल की आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए। पौधे में फुटान होते समय, सिट्टे निकलते समय तथा दाना बनते समय भूमि में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए।

बुवाई के बाद बाजरा की खेती की करें ऐसे देखभाल

बुवाई के बाद बाजरा की खेती की करें ऐसे देखभाल

बाजरा की  खेती की बुवाई जुलाई से अगस्त के बीच की जाती है। लेकिन किसान भाइयों को बुवाई के बाद भी फसल पर नजर रखनी होती है। यदि खेती की निगरानी अच्छी की गयी और खेती की जरूरत के हिसाब से देखभाल की गयी तो पैदावार अच्छी होती है। इससे किसान की आमदनी भी अच्छी हो जाती है। 

बुवाई के बाद सबसे पहले करें ये काम

बाजरे की पैदावार अच्छी बुवाई पर निर्भर करती है। यदि बीज अधिक बोया गया है और पौधों के बीच दूरी मानक के हिसाब से नही है तो पैदावार प्रभावित हो सकती है। यदि बीज कम हो बोया  गया हो तो उससे भी पैदावार प्रभावित होती है। इसलिये खेतों में बुवाई के समय ही एक क्यारी में अलग से बीज बो देने चाहिये ताकि जरूरत पड़ने पर क्यारी मे उगे पौधो की खेतों में रोपाई की जा सके। इसके लिए  बुवाई के बाद जब अंकुर निकल आयें तब किसानों को खेतों का निरीक्षण करना होगा। उस समय यह देखना चाहिये कि बुवाई के समय यदि बीज अधिक पड़ गया हो तो पेड़ों की छंटाई कर लेनी चाहिये। यदि पौधे कम हों या बीज कम अंकुरित हो सके हों तो पहले से तैयार क्यारी से पौधों को रोपना चाहिये।

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सिंचाई के प्रबंधन का रखें विशेष ध्यान

हालांकि बाजरा की बुवाई बरसात के मौसम होती है। बाजरा के बीजों को अंकुरित होने के लिए खेतों में नमी की आवश्यकता होती है। इसलिये  किसान भाइयों को बुवाई के बाद खेतों की बराबर निगरानी करनी होगी। यदि बुवाई के बाद वर्षा नही होती है तो  देखना होगा कि  खेत कहीं सूख तो नहीं रहा है। आवश्यकतानुसार सिंचाई करना चाहिये । आवश्यकता पड़ने पर दो से तीन बार सिंचाई करना चाहिये।  जब बाजरा में बाली या फूल आने वाला हो तब खेत की विशेष देखभाल करनी चाहिये। उस समय यदि वर्षा न हो रही हो और खेत सूख गया हो तो सिंचाई करनी चाहिये। इससे फसल काफी अच्छी हो जायेगी। 

जलजमाव हो तो करें पानी के निकालने का प्रबंध

बाजरा की खेती में किसान भाइयों को वर्षा के समय खेत की निगरानी करते समय यह भी ध्यान देना होगा कि कहीं खेत मे जलजमाव तो नहीं हो गया है। यदि हो गया हो तो पानी के निष्कासन की तत्काल व्यवस्था करनी चाहिये।  जलजमाव से भी फसल को नुकसान हो सकता है। बुवाई के बाद बाजरा की खेती की करें ऐसे देखभाल


खरपतवार को समाप्त करने के लिए करें समय-समय पर निराई गुड़ाई

बाजरे को खरपतवार से सबसे अधिक नुकसान पहुंचता है। चूंकि  इसकी खेती बरसात के मौसम में होती है तो किसान भाइयों को वर्षा के कारण खेत की देखभाल का समय नहीं मिल पाता है। इसके बावजूद किसान भाइयों को चाहिये कि वे बाजरा की खेती की अच्छी पैदावार के लिए खरपतवार का नियंत्रण करे। बुवाई के 15 दिन बाद निराई गुड़ाई करनी चाहिये। उसके बाद एक माह बार निराई गुड़ाई करायें। फसल की बुवाई के दो माह बाद  निराई गुड़ाई करायें। इसके अलावा खरपतवार होने पर एट्राजीन  को पानी में घोल कर छिड़काव करायें।  किसान भाई ध्यान रखें कि एट्राजीन का छिड़काव निराई गुड़ाई करने से तीन-चार दिन पूर्व करना चाहिये। इससे काफी लाभ होता है। 

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बुवाई के बाद उर्वरक भी समय-समय पर दें

बाजरा की अच्छी पैदावार के लिए किसान भाइयों के बाद बुवाई के बाद खेतों को समय-समय पर उर्वरकों की उचित मात्रा देनी चाहिये। एकल कटाई के लिए बुवाई के एक माह बाद 40 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर देनी चाहिये। कई बार कटाई के लिए प्रत्येक कटाई के बाद 30 किलो नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर देनी चाहिये। जस्ते की कमी वाले क्षेत्रों में 10-20 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर देनी चाहिये। कई जगहों पर नाइट्रोजन की जगह यूरिया का प्रयोग किया जाता है। जहां पर यूरिया का प्रयोग किया जाता है वहां पर बुवाई से डेढ़ महीने के बाद 20 से 25 किलो यूनिया प्रति एकड़ के हिसाब से देना चाहिये। बाजरा में कीट एवं रोग प्रबंधन

कीट एवं रोग प्रबंध

बाजरे की खेती में अनेक कीट एवं रोग लगते हैं। किसान भाइयों को चाहिये कि खेतों में खड़ी फसल को कीटों एवं रोगों से बचाने के उपाय करने चाहिये। इसके लिए खेतों में खड़ी फसल की निरंतर निगरानी करते रहना चाहिये। जब भी जैसे ही किसी कीट या रोग का पता चले उसका उपाय करना चाहिये।  

आईये जानते हैं कि कौन-कौन से कीट व रोग बाजरा की खेती में लगते हैं और उन्हें कैसे रोका जा सकता है। 

दीमक : यह कीट बाजरा की खड़ी फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। यह कीट जड़ से लेकर पत्ते तक में लगता है। जब भी इस कीट का पता चले किसान भाइयों को तत्काल सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ईसी ढाई लीटर हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिये।  इसके अलावा नीम की खली का प्रयोग करना चाहिये, इसकी गंध से दीमक भाग जाती है।

तना छेदक कीट: यह कीट भी खड़ी फसल में लगता है। यह कीट पौधे के तने में लगता है और पूरे पौधे को चूस जाता है। इससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है।  इससे बाजरे की फसल को बहुत नुकसान पहुंचता है। इस कीट का नियंत्रण करने के लिए कार्बोफ्यूरान 3 जी 20 किलो अथवा फोरेट 10 प्रतिशत सीजी को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिये। 

हरित बालियां रोग: इस रोग के लगने के बाद बाजरा की बालियां टेढ़ी-मेढ़ी और बिखर जाती हैं।  इस रोग के दिखते ही खरपतवार निकाल कर जीरम 80 प्रतिशत डब्ल्यूपी 2.0 किलो को 500-600 पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिये। 

सफेद लट: यह लट पौधों की जड़ों को काट कर फसल को विभिन्न अवस्थाओं में नुकसान पहुचाती है।  सफेद लट के कीट प्रकाश के प्रति आकषिँत होते हैं। इसलिये प्रकाश पाश पर आकर्षित कर सभी को एकत्रित करके मिट्टी के तेल मिले पानी में डालकर नष्ट कर दें। 

हरी बाली रोग: यह रोग अंकुरण के समय से पौधों की बढ़वार के समय लगता है। इस रोग से पौधों की पत्तियां पीली पड़ जातीं हैं और बढ़वार रुक जाती है।  ऐसे रोगी पौधों को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट करें और कीटनाशकों का इस्तेमाल करें। 

अरगट रोग: यह रोग बाजरा में बाली के निकलने के समय लगता है।  इससे फसल को काफी नुकसान होता है। इस रोग के लगने के बाद पौधां से गुलाबी रंग का चिपचिपा गाढ़ा रस निकलने लगता है। यह पदार्थ बाद में भूरे रंग का हो जाता है। यह बालियों में दानों की जगह भूरे रंग का पिंड बन जाता है। ये जहरीला भी होता है। इसकी रोकथाम के  लिए सबसे पहले खरपतवार हटायें। उसके बाद 250 लीटर पानी में 0.2 प्रतिशत मैंकोजेब मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। लाभ मिलेगा। 

टिड्डियों का प्रकोप: बाजरा की खेती में पौध बड़ा होने के कारण इसमें टिड्डियों के हमले का खतरा बना रहता है।  हमला करने के बाद टिड्डी दल पौधे की सभी पत्तियों को खा जाता है और इससे पैदावार को भी नुकसान होता है।  जब भी टिड्डी दल का हमला हो तो किसान भाइयों को चाहिये कि इसकी रोकथाम के लिए खेत में फॉरेट का छिड़काव करें। 

बाजरे की कटाई

बाजरे की कटाई उस समय करनी चाहिये जब दाना पूरी तरह पक कर तैयार हो जाये। यह माना जाता है कि बुवाई के 80 दिन से लेकर 95 दिन के बीच दाना पूरी तरह से पक जाता है। उसके बाद बाजरा के पौधे की कटाई करनी चाहिये। उसके बाद इसके सिट्टों यानी बालियों को अलग करके उनमें से दाना निकालना चाहिये।

किसान ने बाजरा की खेती करने के लिए तुर्की से मंगवाया बाजरा

किसान ने बाजरा की खेती करने के लिए तुर्की से मंगवाया बाजरा

महाराष्ट्र राज्य के धुले जनपद में सकरी तालुका के पिंपलनेर निवासी किसान निसार शेख ने तुर्की (Turkey) से बाजरे (Pearl millet; Bajra) के बीज मंगाकर, बाजरे की खेती तैयार की है, जिससे उनको अच्छा खासा मुनाफा होने की आशा है। खेती की सारी तैयारी बेहतर तरीके से करने में सफल हुए निसार शेख, तुर्की से मंगाये बाजरे द्वारा तैयार की गयी फसल की ऊंचाई लगभग १२ फीट तक हो चुकी है। साथ ही निसार शेख ने फसल के बारे में बताते हुए कहा कि इस बाजरा की रोटी में अच्छा स्वाद है और इसकी अच्छी रोटी भी बनती है। बाजरा की फसल बारिश की वजह से काफी प्रभावित हुयी है, इसलिए उनको कम उत्पादन होने की सम्भावना है। बतादें कि तुर्की से बाजरे के बीज के लिए निसार शेख को १००० रुपये प्रति किलो की खरीदी पड़ी है।


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किसान नासिर शेख ने फसल के बारे में क्या कहा ?

नासिर शेख ने बाजरे की फसल के बारे में बताते हुए कहा है कि, उन्होंने बाजरे की बुवाई के दौरान प्रति एकड़ डेढ़ किलो बीज बोया है। इसकी भी बुवाई, जुताई एवं सिंचाई भी अन्य बाजरे की तरह ही होती है, इसमें भी समान ही उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। लेकिन इसकी उपज ६० क्विंटल प्रति एकड़ के करीब तक होती है। इस प्रकार तुर्की से बाजरे का बीज मंगाकर बाजरे की खेती किसी ने नहीं की है, साथ ही यह एक अनोखा प्रयोग है।

अन्य क्षेत्रों से भी आ रहे हैं किसान फसल की जानकारी लेने के लिए ?

तुर्की से मंगाए गए बाजरे के बीज की चर्चा आसपास के बहुत बड़े क्षेत्र में है। इस प्रकार से बाजरे की खेती किसी के द्वारा नहीं की जाने के चलते लोग इसको देखने के लिए बहुत दूर से आ रहे हैं। किसानों को इस तरह की फसल के बारे में जानने की बहुत लालसा हो रही है, इसलिए दूर दराज रहने वाले किसान भी नासिर सेख से मिलने आ रहे हैं। किसान बाजरे की १२ फ़ीट ऊंचाई को भी देखने के लिए आतुर हैं।


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बाजरा की खेती के लिए कितने राज्य अनुकूल हैं

बाजरा की खेती के लिए उत्तराखंड, झारखंड, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, हरयाणा एवं आंध्र प्रदेश सहित देश के २१ राज्य के वातावरण अनुकूल हैं। बाजरा को उगाने के लिए न्यूनतम बारिश (२००-६०० मिमी) की स्तिथि में शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उगाया जाता है। बाजरा के अंदर काफी मात्रा में पोषक तत्व मिलते हैं, साथ ही इसकी फसल हर प्रकार की जलवायु में आसानी से प्रभावित नहीं होती है।
पोषक अनाज की श्रेणी में शामिल की गई इस फसल से किसान अच्छी आय कर सकते हैं

पोषक अनाज की श्रेणी में शामिल की गई इस फसल से किसान अच्छी आय कर सकते हैं

हम बात करने जा रहे हैं, किनोवा फसल के बारे में जिसको अनाज के तौर पर उगाया जाता है। किनोवा की फसल का जनक अमेरिका को माना जाता है। किनोवा के बीजों में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व विघमान रहते हैं। जिसका उपभोग करने से हार्ट अटैक, कैंसर, खून की कमी, सांस की बीमारियों में बेहद लाभकारी होता है। इस वजह से किनोवा की खेती भी अच्छी आय का स्त्रोत है। किनोवा को रबी सीजन की मुख्य नकदी फसल कहा जाता हैं, जिसका उत्पादन अक्टूबर से लेकर मार्च तक होता है। किनोवा पत्तेदार सब्जी बथुआ की किस्म का सदस्य पौधा है इसी सहित यह एक पोषक अनाज भी है। आपको बतादें कि किनोवा को प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत भी कहा जाता है। जो कि शरीर में वसा को कम करने, कोलस्ट्रॉल घटाने एवं वजन कम करने के लिए फायदेमंद है। इसकी अच्छी गुणवत्ता को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इसको पोषण अनाज की श्रेणी में शम्मिलित किया गया है। साथ ही, बाजार में इसकी मांग में काफी वृद्धि हो रही है, जिससे किसानों हेतु खेती भी मुनाफे का सौदा माना जा रहा है।

किनोवा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं तापमान

किनोवा का उत्पादन हिमालयीन क्षेत्र से लेकर उत्तर मैदानी क्षेत्रों में आसानी से हो सकती है। सर्दियों का सीजन किनोवा की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसके पौधे ठंडों में पड़ने वाले पाले को भी आसानी से सहन कर सकते हैं। बीजों को अंकुरित होने हेतु 18 से 22 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। अधिकतम 35 डिग्री तापमान को ही बीज सहन कर सकता है। किसी भी फसल की बेहतर पैदावार के लिए जलवायु एवं तापमान एक मुख्य भूमिका अदा करते हैं।

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किनोवा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

किनोवा की कृषि हेतु तकरीबन समस्त मृदा अनुकूल मानी जाती हैं। परंतु, किसान भाई यह अवश्य ध्यान रखें कि भूमि अच्छी जल निकासी वाली होनी अनिवार्य है। साथ ही, भूमि के पीएच मान का सामान्य होना अत्यंत आवश्यक है। भारत में किनोवा का उत्पादन रबी सीजन में किया जाता है।

कौन-सा समय किनोवा की बुवाई के लिए अच्छा माना जाता है

भारत की जलवायु के अनुरूप बीजों की बुआई नवम्बर से मार्च की समयावधि में करनी चाहिए। हालाँकि, विभिन्न स्थानों पर इसकी कृषि जून से जुलाई के माह में भी की जा सकती है।

किनोवा की खेती से पहले बीजों की मात्रा एवं बीज उपचार

अगर हम बात करें किनोवा की खेती के लिए प्रति एकड़ कितने बीज की आवश्यकता होती है। तो आपको बतादें कि किनोवा की खेती के लिए तकरीबन 1 से 1.5 किलो बीज की आवश्यकता होती है। बीजों की रोपाई से पूर्व बीज उपचार करना बेहद जरुरी होता है। बीज उपचारित होने से अंकुरण के वक्त कोई दिक्कत नहीं होती एवं फसल भी रोग मुक्त हो जाती है। किनोवा की बुआई से पूर्व बीज को गाय के मूत्र में 24 घंटे हेतु डालकर उपचारित करना आवश्यक है।